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फसल अवशेष प्रबंधन

घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम

घर पर ही यह चारा उगाकर कमाएं दोगुना मुनाफा, पशु और खेत दोनों में आएगा काम

भारत के किसानों के लिए कृषि के अलावा पशुपालन का भी अपना ही एक अलग महत्व होता है। छोटे से लेकर बड़े भारतीय किसान एवं ग्रामीण महिलाएं, पशुपालन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था को एक ठोस आधार प्रदान करने के अलावा, खेती की मदद से ही पशुओं के लिए चारा एवं फसल अवशेष प्रबंधन (crop residue management) की भी व्यवस्था हो जाती है और बदले में इन पशुओं से मिले हुए ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल खेत में ही करके उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है।

एजोला चारा (Azolla or Mosquito ferns)

अलग-अलग पशुओं को अलग-अलग प्रकार का चारा खिलाया जाता है, इसी श्रेणी में एक विशेष तरह का चारा होता है जिसे 'एजोला चारा' के नाम से जाना जाता है। 

यह एक सस्ता और पौष्टिक पशु आहार होता है, जिसे खिलाने से पशुओं में वसा एवं वसा रहित पदार्थ वाली दूध बढ़ाने में मदद मिलती है। 

अजोला चारा की मदद से पशुओं में बांझपन की समस्या को दूर किया जा सकता है, साथ ही उनके शरीर में होने वाली फास्फोरस की कमी को भी दूर किया जा सकता है।

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इसके अलावा पशुओं में कैल्शियम और आयरन की आवश्यकता की पूर्ति करने से उनका शारीरिक विकास भी बहुत अच्छे से हो पाता है।

समशीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाला यह अजोला एक जलीय फर्न होता है।

अजोला की लोकप्रिय प्रजाति पिन्नाटा भारत से किसानों के द्वारा उगाई जाती है। यदि अजोला की विशेषताओं की बात करें तो यह पानी में बहुत ही तेजी से वृद्धि करते हैं और उनमें अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोटीन होने की वजह से जानवर आसानी से पचा भी लेते है। अजोला में 25 से 30% प्रोटीन, 60 से 70 मिलीग्राम तक कैल्शियम और 100 ग्राम तक आयरन की मात्रा पाई जाती है।

कम उत्पादन लागत वाला वाला यह चारा पशुओं के लिए एक जैविक वर्धक का कार्य भी करता है।

एक किसान होने के नाते आप जानते ही होंगे, कि रिजका और नेपियर जैसा चारा भारतीय पशुओं को खिलाया जाता रहा है, लेकिन इनकी तुलना में अजोला पांच गुना तक अच्छी गुणवत्ता का प्रोटीन और दस गुना अधिक उत्पादन दे सकता है।

अजोला चारा उत्पादन के लिए आपको किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं होगी, बल्कि किसान खुद ही आसानी से घर पर ही इसको ऊगा सकते है।

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इसके लिए आपको क्षेत्र को समतल करना होगा और चारों ओर ईंट खड़ी करके एक दीवार बनाई जाती है।

उसके अंदर क्यारी बनाई जाती है जिससे पानी स्टोर किया जाता है और प्लांट को लगभग 2 मीटर गहरे गड्ढे में बनाकर शुरुआत की जा सकती है। 

इसके लिए किसी छायादार स्थान का चुनाव करना होगा और 100 किलोग्राम छनी हुई मिट्टी की परत बिछा देनी होगी, जोकि अजोला को पोषक तत्व प्रदान करने में सहायक होती है।

इसके बाद लगभग पन्द्रह लीटर पानी में पांच किलो गोबर का घोल बनाकर उस मिट्टी पर फैला देना होगा।

अपने प्लांट में आकार के अनुसार 500 लीटर पानी भर ले और इस क्यारी में तैयार मिश्रण पर, बाजार से खरीद कर 2 किलो ताजा अजोला को फैला देना चाहिए। इसके पश्चात 10 लीटर हल्के पानी को अच्छी तरीके से छिड़क देना होगा।

इसके बाद 15 से 20 दिनों तक क्यारियों में अजोला की वर्द्धि होना शुरू हो जाएगी। इक्कीसवें दिन की शुरुआत से ही इसकी उत्पादकता को और तेज करने के लिए सुपरफ़ास्फेट और गोबर का घोल मिलाकर समय-समय पर क्यारी में डालना होगा। 

यदि आप अपने खेत से तैयार अजोला को अपनी मुर्गियों को खिलाते हैं, तो सिर्फ 30 से 35 ग्राम तक खिलाने से ही उनके शरीर के वजन एवं अंडा उत्पादन क्षमता में 20% तक की वृद्धि हो सकती है, एवं बकरियों को 200 ग्राम ताजा अजोला खिलाने से उनके दुग्ध उत्पादन में 30% की वृद्धि देखी गई है।

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अजोला के उत्पादन के दौरान उसे संक्रमण से मुक्त रहना अनिवार्य हो जाता है, इसके लिए सीधी और पर्याप्त सूरज की रोशनी वाले स्थान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हालांकि किसी पेड़ के नीचे भी लगाया जा सकता है लेकिन ध्यान रहे कि वहां पर सूरज की रोशनी भी आनी चाहिए।

साथ ही अजोला उत्पादन के लिए 20 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को उचित माना जाता है।

सही मात्रा में गोबर का घोल और उर्वरक डालने पर आपके खेत में उगने वाली अजोला की मात्रा को दोगुना किया जा सकता है। 

यदि आप स्वयं पशुपालन या मुर्गी पालन नहीं करते हैं, तो उत्पादन इकाई का एक सेंटर खोल कर, इस तैयार अजोला को बाजार में भी बेच सकते है। 

उत्तर प्रदेश, बिहार तथा झारखंड जैसे राज्यों में ऐसी उत्पादन इकाइयां काफी मुनाफा कमाती हुई देखी गई है और युवा किसान इकाइयों के स्थापन में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। 

किसान भाइयों को जानना होगा कि पशुओं के लिए एक आदर्श आहार के रूप में काम करने के अलावा, अजोला का इस्तेमाल भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में हरी खाद के रूप में भी किया जाता है। 

इसे आप 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अपने खेत में फैला सकते हैं, तो आपके खेत की उत्पादकता आसानी से 20% तक बढ़ सकती है। लेकिन भारतीय किसान इसे खेत में फैलाने की तुलना में बाजार में बेचना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि वहां पर इसकी कीमत काफी ज्यादा मिलती है।

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आशा करते हैं, घर में तैयार किया गया अजोला चारा भारतीय किसानों के पशुओं के साथ ही उनके खेत के लिए भी उपयोगी साबित होगा और हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी उन्हें पूरी तरीके से पसंद आई होगी।

अमेरिकी वैज्ञानिक टीम बिहार में बनाएगी न्यू कृषि मॉडल, पसंद आया बिहार का जलवायु

अमेरिकी वैज्ञानिक टीम बिहार में बनाएगी न्यू कृषि मॉडल, पसंद आया बिहार का जलवायु

पटना। विश्व के कई देश कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने की जुगत में लगे हुए हैं। लेकिन जलवायु अनुकूल न होने के कारण कई स्थानों पर खेती को मदद नहीं मिल पाती है। अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम भी भारत में कृषि मॉडल बनाने के लिए सर्वे कर रही है। अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम को बिहार की जलवायु पसंद आयी है। वह जल्दी ही बिहार में न्यू कृषि मॉडल बनाने जा रहे हैं, जिससे खेती और किसानों फायदा मिलेगा। बिहार में बीसा समिट (BISA-CIMMYT) की तरफ से जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम को बिहार सरकार ने सभी 38 जिलों में लागू कर दिया है। बीते तीन दिनों से अमेरिका के कोर्नेल विश्वविद्यालय से वैज्ञानिकों की टीम बिहार में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम संचालित कर रही है। इस दौरान अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम को बिहार की जलवायु बेहद पसंद आयी है।
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टीम ने जुटाई फसल अवशेष प्रबंधन की जानकारी

- अमेरिकन वैज्ञानिकों की टीम ने बिहार के भगवतपुर जिले के एक गांव, जो की सीआरए (Climate Resilient Agriculture (CRA) Programme under Jal-Jeevan-Haryali Programme) यानी जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के जल-जीवन-हरियाली कार्यक्रम के अंतर्गत आता है, का दौरा किया है। यहां मुआयना के बाद टीम ने फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Residue Management) की जानकारी भी जुटाई है। इसके अलावा बीसा पूसा ( बोरोलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साऊथ एशिया - Borlaug Institute for South Asia (BISA)) में चल रहे लांग ट्रर्म ट्राइल्स, जीरो टिलेज विधि और मेड़ विधि के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई हैं। जल्दी ही बिहार में इसका असर देखने को मिलेगा।
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- बिहार सरकार द्वारा चलाए जा रहे जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम की पूरे विश्व में सराहना हो रही है। यहां आकर कई देशों के वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। बिहार समेत देश के अन्य कई कृषि संस्थानों के साथ मिलकर जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम किसानों तक पहुंच रहे हैं। इससे फसल का विविधीकरण करके और नई तकनीकी का उपयोग करके किसानों को फायदा देने की योजना बनाई जा रही है। जो आगामी दिनों में प्रभावी रूप से दिखाई देगी। ------ लोकेन्द्र नरवार